कभी सोचा न था कि
इस कदर आप से जुदा होंगे
आखरी बार जो मिले थे आपसे
अंतिम मिलन उसे कहेंगे
किसे पता था कि आप हमे
यहीं छोड़कर चल पड़ेंगे
कोशिश करे हम तो भी
आपको न कभी भुला सकेंगे
कहाँ चल दिए उस घर को छोड़
जो टिका था उस संजीव नींव पर
कहाँ चल दिए उस हाथ को छोड़
अपनी विनीता को भुलाकर
श्रवण कुमार जिन बने
उन्हें ही छोड़ दिया अकेला
खुशमिज़ाज़ और रंगीन था जो भविष्य
नज़र आता है आज वही धुंधला
कार्यक्षेत्र में अनुपम
गुण संपूर्ण जैसे स्वयं हो केशव
पर पहुँच गए सितारों में
कोई सीढ़ी न जाये जिस तक
यकीन न कर सकूँ अब भी
कि न आओगे घर अब आप कभी
नहीं लाओगे वो चॉकलेट्स और मिठाई अब
न बनाओगे पनीर और पिज़्ज़ा अलग
न गूंज सकेगी वो हसी दोबारा
रोशन हो उठता था जिससे संसार सारा
फिर वह आवाज़ न देगी सुनाई
"लड़की देख ये क्या है?" सोच आँख भर आई
न होगा अब वह कनपुरिया स्टाइल में बतियाना
और न "बवाल हो तुम" यह कहलाना
याद करू आपको तो
न मान सकू सच इसे
कि कल तक जो हँस कर थे खड़े
वो आज लग गए मौत के गले
क्यूँ चले गए इतनी दूर हमसे आप
चाहकर भी न थाम सके आपका हाथ
चले गए क्यूँ दूर इतना
कि आपका साथ लगे मीठा सपना
फोन,Whatsapp,skype सब बेकार हैं
जोड़ सके न आपसे कोई तार है
मानली जो आपने जीवन से हार है
आपसे मिलने को हम बेकरार है
जब होती हैं बंद आँखें हमारी
तैरती है आपकी छवियाँ साड़ी
लगता है खींच लॉन वहीँ से आपको
लौटाए जीवन कि खुशियां सारी
शिखर कि ऊंचाइयां चूने वाले
समुद्र सी शीतलता रखने वाले
पर्वत सी दृढ़ता है जिसमें
नदी से चंचल और निराले
मन करता है आपसे आकर कहु
इंतज़ार करना मेरा जब तक मैं आई.आई.टी - कानपुर न पहुंचु
करू आपसे आप जैसा बनने का वादा
अपना लू आप जैसा जीवन सादा
पर वे कर्ण न अब कुछ सुन पाएंगे
आशीश देने को वे हस्त न उठ पाएंगे
न वे आँखे देख सकेंगी बेटी का फेरा
न देख सकेंगी अपनी बहु का चेहरा
जीवन कि इस नाव पर सवार होकर
निकले थे 1957 के सुहाने सफ़र पर
बढ़ाते चले हर आगरा कदम
मुश्किलों से लड़ने को तैयार हरदम
आये तूफ़ान उठी अनेकों लहरें
डगमगाई नाव,पर सम्भाला आपने
बिठाया अपने साथ बुआ और बच्चों को
प्यार से सींचा हर अनमोल रिश्ते को
उतार परिवार को उस समुद्र किनारे
ले गए अपनी नाव बिना किसी सहारे
पर आ गया सामने भयानक बवंडर
जकड़ लिया जिसने आपनो अपने अंदर
कोशिश की बहुत नाव को बहार निकालने कि
परन्तु तब तक थी बहुत देर हो चुकी
समुद्र ने पूछा चलोगे मेरे साथ
किनारे पर सब ताक रहे थे आपकी बाट
मन किया पर समुद्र था अटल
उसके पास था समय के चक्र का बल
उड़ा ले गया वहाँ जहाँ रहते थे सवयं भगवन
कहा कि ये है दुनिया के अनमोल रत्न
आंखों में नमी रह गई हमारी
जब नाव लौटी बिन सवारी II
इस कदर आप से जुदा होंगे
आखरी बार जो मिले थे आपसे
अंतिम मिलन उसे कहेंगे
किसे पता था कि आप हमे
यहीं छोड़कर चल पड़ेंगे
कोशिश करे हम तो भी
आपको न कभी भुला सकेंगे
कहाँ चल दिए उस घर को छोड़
जो टिका था उस संजीव नींव पर
कहाँ चल दिए उस हाथ को छोड़
अपनी विनीता को भुलाकर
श्रवण कुमार जिन बने
उन्हें ही छोड़ दिया अकेला
खुशमिज़ाज़ और रंगीन था जो भविष्य
नज़र आता है आज वही धुंधला
कार्यक्षेत्र में अनुपम
गुण संपूर्ण जैसे स्वयं हो केशव
पर पहुँच गए सितारों में
कोई सीढ़ी न जाये जिस तक
यकीन न कर सकूँ अब भी
कि न आओगे घर अब आप कभी
नहीं लाओगे वो चॉकलेट्स और मिठाई अब
न बनाओगे पनीर और पिज़्ज़ा अलग
न गूंज सकेगी वो हसी दोबारा
रोशन हो उठता था जिससे संसार सारा
फिर वह आवाज़ न देगी सुनाई
"लड़की देख ये क्या है?" सोच आँख भर आई
न होगा अब वह कनपुरिया स्टाइल में बतियाना
और न "बवाल हो तुम" यह कहलाना
याद करू आपको तो
न मान सकू सच इसे
कि कल तक जो हँस कर थे खड़े
वो आज लग गए मौत के गले
क्यूँ चले गए इतनी दूर हमसे आप
चाहकर भी न थाम सके आपका हाथ
चले गए क्यूँ दूर इतना
कि आपका साथ लगे मीठा सपना
फोन,Whatsapp,skype सब बेकार हैं
जोड़ सके न आपसे कोई तार है
मानली जो आपने जीवन से हार है
आपसे मिलने को हम बेकरार है
जब होती हैं बंद आँखें हमारी
तैरती है आपकी छवियाँ साड़ी
लगता है खींच लॉन वहीँ से आपको
लौटाए जीवन कि खुशियां सारी
शिखर कि ऊंचाइयां चूने वाले
समुद्र सी शीतलता रखने वाले
पर्वत सी दृढ़ता है जिसमें
नदी से चंचल और निराले
मन करता है आपसे आकर कहु
इंतज़ार करना मेरा जब तक मैं आई.आई.टी - कानपुर न पहुंचु
करू आपसे आप जैसा बनने का वादा
अपना लू आप जैसा जीवन सादा
पर वे कर्ण न अब कुछ सुन पाएंगे
आशीश देने को वे हस्त न उठ पाएंगे
न वे आँखे देख सकेंगी बेटी का फेरा
न देख सकेंगी अपनी बहु का चेहरा
जीवन कि इस नाव पर सवार होकर
निकले थे 1957 के सुहाने सफ़र पर
बढ़ाते चले हर आगरा कदम
मुश्किलों से लड़ने को तैयार हरदम
आये तूफ़ान उठी अनेकों लहरें
डगमगाई नाव,पर सम्भाला आपने
बिठाया अपने साथ बुआ और बच्चों को
प्यार से सींचा हर अनमोल रिश्ते को
उतार परिवार को उस समुद्र किनारे
ले गए अपनी नाव बिना किसी सहारे
पर आ गया सामने भयानक बवंडर
जकड़ लिया जिसने आपनो अपने अंदर
कोशिश की बहुत नाव को बहार निकालने कि
परन्तु तब तक थी बहुत देर हो चुकी
समुद्र ने पूछा चलोगे मेरे साथ
किनारे पर सब ताक रहे थे आपकी बाट
मन किया पर समुद्र था अटल
उसके पास था समय के चक्र का बल
उड़ा ले गया वहाँ जहाँ रहते थे सवयं भगवन
कहा कि ये है दुनिया के अनमोल रत्न
आंखों में नमी रह गई हमारी
जब नाव लौटी बिन सवारी II
A loss that can never be recovered..! :(
ReplyDeleteEmotions very well expressed in words..!